जिस देश को अपनी भाषा और अपने साहित्य के गौरव का अनुभव नहीं है, वह उन्नत नहीं हो सकता। - देशरत्न डॉ. राजेन्द्रप्रसाद।
कहानियां
कहानियों के अंतर्गत यहां आप हिंदी की नई-पुरानी कहानियां पढ़ पाएंगे जिनमें कथाएं व लोक-कथाएं भी सम्मिलित रहेंगी। पढ़िए मुंशी प्रेमचंद, रबीन्द्रनाथ टैगोर, भीष्म साहनी, मोहन राकेश, चंद्रधर शर्मा गुलेरी, फणीश्वरनाथ रेणु, सुदर्शन, कमलेश्वर, विष्णु प्रभाकर, कृष्णा सोबती, यशपाल, अज्ञेय, निराला, महादेवी वर्मालियो टोल्स्टोय की कहानियां

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पराया सुख - यशपाल | Yashpal

सूर्योदय हो गया है या नहीं, जान नहीं पड़ता था। आकाश घने बादलों से घिरा था। पानी के बोझ से भारी ठंडी हवा कुछ तेजी से बह रही थी। पठानकोट स्टेशन के मुसाफ़िर खाने में बैठे हुऐ पहाड़ जानेवाले यात्री, कपड़ों में लिपट लिपट कर लारियों के चलने के समय की प्रतीक्षा कर रहे थे। लारियों के ड्राइवर मुसाफ़िरों की तलाश में इधर-उधर दौड़ रहे थे। जितनी चिन्ता मुसाफ़िरों को आगे जाने की थी उससे कहीं अधिक चिन्ता थी इन ड्राइवरों को मुसाफ़िरों को उनके घर पहुँचा देने की।
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तीन बच्चे  - सुभद्रा कुमारी

मेरे बच्चों में से प्रत्येक ने अपने लिए एक-एक बगीचा लगाया था। बगीचा क्या, 'फूलों की छोटी-छोटी क्यारियाँ थीं। एक दिन सवेरे हम लोगों ने देखा कि उन क्यारियों में फूल खिल आए हैं।
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तमाशा  - स्वदेश दीपक

वह अधेड़ उम्र का आदमी बड़ी देर से किसी साएदार पेड़ की तलाश कर रहा है। उसका आठ साल का लड़का बड़े थके-थके कदमों से बाप के पीछे चल रहा है। उसके गले में एक छोटा-सा ढोल पड़ा हुआ है जिसे वह थोड़ी-थोड़ी देर के बाद हाथों से पीट देता है। जब भी कोई पेड़ नजदीक आता है वह बड़ी तरसती निगाहों से उसे देखता है - शायद बापू इसके नीचे ठहर जाए। लेकिन नहीं, पेड़ बड़ा है तो साएदार नहीं। अगर साएदार है तो छोटा है। मजमा लगाने के लायक नहीं। बाप ने सिर पर बड़ी-सी पगड़ी बाँध रखी है। इसके लटक रहे सिरे से वह बार-बार मुँह और गर्दन को पोंछ लेता है। इनके पीछे-पीछे लड़कों का एक झुंड चला आ रहा है। बाप बार-बार पीछे मुड़ कर पीछा करते लड़कों को देखता है और खुश होता है। खेल तमाशा देखनेवाले यह छोटे-छोटे दर्शक ही भीड़ को बढ़ाने में मदद देते हैं।
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हूक - चन्द्रगुप्त विद्यालंकार

(एक)
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